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सु॒वीर॑स्ते जनि॒ता म॑न्यत॒ द्यौरिन्द्र॑स्य क॒र्ता स्वप॑स्तमो भूत्। य ईं॑ ज॒जान॑ स्व॒र्यं॑ सु॒वज्र॒मन॑पच्युतं॒ सद॑सो॒ न भूम॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

suvīras te janitā manyata dyaur indrasya kartā svapastamo bhūt | ya īṁ jajāna svaryaṁ suvajram anapacyutaṁ sadaso na bhūma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽवीरः॑। ते॒। ज॒नि॒ता। म॒न्य॒त॒। द्यौः। इन्द्र॑स्य। क॒र्ता। स्वपः॑ऽतमः। भू॒त्। यः। ई॒म्। ज॒जान॑। स्व॒र्य॑म्। सु॒ऽवज्र॑म्। अन॑पऽच्युतम्। सद॑सः। न। भूम॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:17» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजसन्तानविचार को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्यवान् (ते) आप का (द्यौः) बिजुली के सदृश (सुवीरः) श्रेष्ठवीर (जनिता) उत्पन्न करनेवाला (मन्यत) माना जाय और वह (स्वपस्तमः) अतीव उत्तम कर्मों से पूरित (कर्त्ता) करनेवाला (भूत्) हो वा (यः) जो (ईम्) महान् (स्वर्य्यम्) अत्यन्त सुख के लिये हित और (अनपच्युतम्) नाश से रहित (सुवज्रम्) उत्तम आयुधोंवाले पुरुष को (जजान) उत्पन्न कर चुका उसको (सदसः) सभासदों के (न) सदृश हम लोग प्राप्त (भूम) होवें ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे राजन् ! जैसे श्रेष्ठ लोग अति उत्तम राजा को प्राप्त होकर और न्याय का प्रचार करके यशवाले होते हैं, इसी प्रकार यदि आप धर्मयुक्त ब्रह्मचर्य्य से पुत्रेष्टिकर्म्म की रीति से अपनी प्रिया में पुत्र उत्पन्न करें तो वह भी प्रसिद्ध यशवाला होवे ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजसन्तानविचारविषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजँस्त इन्द्रस्य द्यौरिव सुवीरो जनिता मन्यत स्वपस्तमः कर्त्ता भूद् य ईं स्वर्य्यमनपच्युतं सुवज्रं पुरुषं जजान ते सदसो न वयं प्राप्ता भूम ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुवीरः) शोभनश्चासौ वीरश्च (ते) तव (जनिता) जनकः (मन्यत) मन्येत (द्यौः) विद्युदिव (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यस्य (कर्त्ता) (स्वपस्तमः) शोभनान्यपांसि कर्माणि यस्य सोऽतिशयितः (भूत्) भवेत् (यः) (ईम्) महान्तम् (जजान) (स्वर्य्यम्) स्वर्हितम् (सुवज्रम्) शोभनानि वज्राण्यायुधानि यस्य तम् (अनपच्युतम्) अपचयरहितम् (सदसः) सभासदः (न) इव (भूम) ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे राजन् ! यथा सुसभ्या अनुत्तमं राजानं प्राप्य न्यायं प्रचार्य कीर्त्तिमन्तो जायन्त एवमेव यदि भवान् धर्म्येण ब्रह्मचर्य्येण पुत्रेष्टिरीत्या प्रियायां सुतं जनयेत्तर्हि सोऽपि प्रख्यातसुकीर्तिः स्यात् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा! जसे सभ्य लोक अत्यंत उत्तम राजाला प्राप्त करून न्यायाचा प्रचार करून कीर्तिवान होतात, त्याच प्रकारे जर तू धर्मयुक्त ब्रह्मचर्याने पुत्रेष्टी कर्माच्या रीतीने आपल्या प्रियेपासून पुत्र उत्पन्न केलास तर त्यालाही प्रसिद्धी मिळेल. ॥ ४ ॥